संविधान सभा के समक्ष बहस के प्रमुख विषयों

 

प्रश्न : भारतीय संविधान के निर्माण में उठे किन्हीं चार महत्त्वपूर्ण मुद्दों को समझाएँ।

अथवा, संविधान सभा के समक्ष बहस के प्रमुख विषयों पर एक आलोचनात्मक पसीक्षण करें।

अथवा, संविधान निर्माताओं के सामने प्रमुख समस्याओं के बारे में बतायें।

उत्तर ; संविधान का निर्माण करते समय निम्नलिखित महत्त्वपूर्ण विषयों पर विचार कर उनका समाधान किया गया -

पृथक निर्वाचिका की समस्या : संविधान सभा में पृथक निर्वाचिका के प्रश्न पर मतभेद थे | 27 अगस्त 1947 को मद्रास के बी. पोकर बहादुर ने पृथक निर्वाचिका के पक्ष में अल्पसंख्यकों को राजनीतिक व्यवस्था में पूर्ण प्रतिनिधित्व देने की माँग की। परन्तु सरदार पटेल जैसे राष्ट्रवादी नेता

इसके विरुद्ध थे। गोविन्द वल्‍लभ पंत के अनुसार पृथक निर्वाचिका राष्ट्र और अल्पसंख्यक वर्गों दोनों

के लिए हानिकारक है। विभाजन के सम्रय हिंसा को देखते हुए डॉ. अम्बेडकर ने पृथक निर्बाचिका को

माँग त्याग दी थी। अंत में संविधान सभा ने अस्पृश्यता का अंत, हिन्दू मन्दिरों को सबके लिए खोलना

निचली जातियों के लिए विधायिकाओं और सरकारी नौकरी में आरक्षण के सुझाव दिए।

 

() शक्तियों का बँटबारा : संविधान के मसविदे में शक्तियों का बँटबारे के अन्तर्गत तीन

सूचियों का निर्माण किया गया था। केन्द्रीय सरकार को राज्य सरकारों से शक्तिशाली बनाया गया था,

परन्तु संविधान सभा में इस प्रश्न पर मतभेद थे। मद्रास के सदस्य के. सन्‍्तनम राज्यों को अधिक

शक्तियाँ देने के पक्ष में थे। वह राज्यों को अधिक शक्तियाँ प्रदान करना चाहते थे ताकि उनको केन्द्र

पर निर्भर न रहना पड़े। कक ।

कुछ सदस्य समवर्ती सूची और केन्द्रीय सूची में कम विषय रखने के पक्ष में थे। परन्तु दूसरी ओर

अनेक सदस्य 935 के कानून की तरह केन्द्र को अधिक शक्तियाँ देने के पक्ष में थे। अन्त में राज्यों

के अधिकारों की तुलना में केन्द्र को अधिक शक्तियाँ प्रदान की गई। ०

राष्ट्र की भाषा : राष्ट्र भाषा पर भी मतभेद थे। विशेष रूप दक्षिण के प्रतिनिधियों द्वारा हिन्दी

का विरोध हुआ। अन्त में यह सुझाव दिया गया कि देवनागरी लिपि में लिखी हिन्दी भाषा भारत की

राजकीय भाषा होगी, पर 5 वर्ष तक सरकारी कार्यों में अँगरेजी का प्रयोग होगा। प्रत्येक प्रान्त को

अपने कार्यों के लिए कोई एक क्षेत्रीय भाषा चुनने का अधिकार होगा।

आर्थिक शक्तियाँ : संविधान सभा में के. सन्‍्तनम जैसे सदस्य राज्यों को अधिक आर्थिक

शक्तियाँ प्रदान करने के पक्ष में थे। उनका विचार था कि धन की कमी के कारण राज्यों को शिक्षा,

सड़कों का निर्माण आदि के लिए केन्द्र पर निर्भर करना पड़ेगा और ऐसी स्थिति में केन्द्रीयकरण

हानिकारक साबित होगा। अन्त में कुछ करों की आय केन्द्र सरकार को दी गई। कुछ बिषयों में आय

के विभाजन का प्रावधान किया गया तथा राज्य सरकारों को अपने स्तर पर भी कुछ कर जैसे बिक्री

कर; सम्पत्ति कर आदि लेने का अधिकार दिया गया।

इस प्रकार विभिन्‍न विषयों, जिन पर मतभेद थे, का समाधान किया गया व सहमति के आधार

पर उनको संविधान में सम्मिलित किया गया

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